एक छिपकली की कहानी
आज एक पर्दा लगाते समय छिपकली का एक बच्चा मेरे ऊपर गिरा, और फिर नीचे ज़मीन में गिरा, मेरी कुर्सी के पास। मुझे कुर्सी पीछे खींचनी थी। मुझे लगा यह कुर्सी के नीचे आ जाएगा, इसीलिए मैंने उसे दूर करना चाहा। जब वह नहीं हटा, तो मैंने एक छोटे सा काग़ज़ का टुकड़ा लेकर उसे हिलाना चाहा। उसका एक पैर इतना ज़ोर से ज़मीन पर जमा हुआ था कि मुझे लगा शायद उसका पैर दब गया है। फिर बाद में महसूस हुआ कि दरअसल उसकी पकड़ थी ज़मीन पर। पहली बार मैंने देखा कि छिपकली की पकड़ ज़मीन पर कितनी मजबूत होती है। ऐसे ही हमारी पकड़ भी मजबूत होनी चाहिए। हम जो कुछ करना चाहते हैं हमें उससे विचलित नहीं होना चाहिए, चाहे कितनी ही चुनौतियां आयें।